ग्रहों का परिचय
ज्योतिष शास्त्र में सबसे पहले ग्रहों का अध्ययन कीया जाता है. इस भाग में हम ग्रहों का अध्ययन करेंगे.
रोजमर्रा की जिंदगी में भले ही आम आदमी को ग्रहों के संदर्भ में पूरी तरह से जानकारी ना भी हो, लेकीन वह बहुत ही आसानी से अपने साथ होने वाली घटनाओं को ग्रहों के साथ जोड लेता है. जैसे अगर कुछ अच्छा होता है तो मेरे ग्रह अब बहुत ही अच्छे चल रहे है, ऐसी उसकी धारणा होती है. साथ ही कुछ बुरा होने पर उसका संबंध भी ग्रहों से ही जोडा जाता है. न केवल अपने लिए बल्की दूसरों के लिए भी यह आसानी से कहा जाता है की उसके ग्रह आसमान की उँचाई पर है. क्यों की भले ही हम सभी ग्रहों के संदर्भ में नहीं जानते हैं लेकीन हर कोई मानता है की जो कुछ भी होता है वह ग्रहों के कारण ही होता है, इस पर सबका विश्वास है. बल्की यह धारणा हमारी संस्कृति में ही बसी हुई है. संक्षेप में, मै यह कहना चाहती हूँ की मानव जीवन ग्रहों की दिशा और दशा पर निर्भर करता है. इसका सीधा सा अर्थ है की मनुष्य का पूरा जीवन ग्रहों के चक्र पर आधारित है. इसलिए ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का बडा ही महत्त्व है.
रात के अंधेरे में जब हम आकाश को ध्यान से देखते है तो अनगिनत तारे दिखाई देते है. आज तक उनकी गिनती कोई नहीं कर पाया है. क्यों की आकाश मंडल हम सिर्फ अपनी आँखों से देखते है, उतना ही नहीं होता. वह तो अंतहीन है. हमारे ब्रह्माण्ड में अरबो की संख्या में तारे है. कई सूरज है वैसे ही कई सौर मंडल भी है. इन सभी तारों का एक दूसरे से अंतर लाखों मीलों का है. कई सौर मंडलों में से अपना एक सौर मंडल है. एक तारामंडल है, जिसे हम विश्व कहते है. ऐसे कई विश्व इस ब्रह्माण्ड में मौजूद है, खगोल विज्ञान का कहना है. साथ ही हमारे सौर मंडल में कुल १२ ग्रह है. जिसे आज का आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है. इस संदर्भ में भी हमने सीखा है. आज फिर से हम उसी संदर्भ में नए सिरे से जानने की, सीखने की कोशिश करेंगे. सिर्फ ग्रहों की पहचान नहीं बल्की उन चीजों का भी अध्ययन करेंगे जिनके संदर्भ में हम नहीं जानते है. हमारे सौर मंडल में सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहू, केतु, हर्षल, नेपच्यून, प्लुटो यह १२ ग्रह है. इनमें से पहले सात ग्रह सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि है. राहू और केतू इन दो ग्रहों को छाया ग्रह कहा जाता है. हर्षल, नेपच्यून और प्लुटो यह आज के प्रचलित ग्रह है. सूर्य को सभी ग्रहों का राजा कहा जाता है. वह केंद्र स्थान में स्थिर होता है. सौर मंडल के अन्य सभी ग्रह लगातार इसके चारों ओर भ्रमण करते रहते है. चूंकी सूर्य स्थिर है, इसलिए उसे खगोल विज्ञान में एक तारा माना जाता है. सूर्य की अपनी ग्रहमाला है. उसमें कई ग्रह है. जो ग्रह आकार में छोटे होतें है उन्हें लघुग्रह कहते है. उसमें ही बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, हर्षल और नेपच्यून यह सात सबसे बडे ग्रह है. यह हमारे सूर्य का परिवार माना जाता है.
फलज्योतिष शास्त्र पूरी तरह से सौर मंडल के इन ग्रहों के गुणधर्म, विशेषता, गति और उनके ब्रह्माण्ड पर पडने वाले प्रभाव पर निर्भर करता है. इसमें राहू और केतु भी शामिल है. वास्तव में राहु और केतु ग्रह नहीं है. वे छाया ग्रह है. वे चंद्रमा की कक्षा और पृथ्वी की कक्षा के दो अन्तर्विभाजक बिंदु है. लेकीन उनके पास गति है और उनके प्रभाव का अनुभव कीया जाता है, इसलिए उन्हे ग्रह के रुप में जाना जाता है. जिस तरह हर कीसी का अपना अस्तित्व होता है, अपना एक स्वभाव होता है और हर कोई उसी के अनुसार काम करता है, उसी तरह प्रत्येक ग्रह का अपना एक अस्तित्व और स्वभाव होता है. प्रत्येक ग्रह के अपने अधिकार भी होतें है. उसी के बल पर ग्रह काम करतें हैं और उसी के अनुसार मानव जीवन प्रभावित भी करतें हैं. जिस प्रकार कीसी को जानने के लिए पहले उसके स्वभाव को जानना आवश्यक होता है, उसी प्रकार ग्रहों को समझने के लिए उनके स्वभाव गुणों को समझना अत्यावश्यक है. जिसका अध्ययन अब हम करने वालें है.
रवि : रवि को सभी ग्रहों का राजा कहा जाता है. रवि केंद्र में स्थिर रहता है. परिवार का प्रमुख होने के कारण रवि अधिकारों का कारक ग्रह है. राशिचक्र में रवि सिंह राशि का स्वामी है. परिणाम स्वरुप सिंह राशि के जातक बहुत ही मजबूत है. उनको हमेशा केंद्र स्थान में रहना और बड्डपन हासिल करना अच्छा लगता है. यह रवि के प्रभाव के कारण होता है.
चंद्रमा : चंद्रमा ग्रहों के मंत्रीमंडल का प्रधान कहलाता है. चंद्रमा को गौरवशाली ग्रह भी कहा जाता है. इसलिए यदि कीसी व्यक्ति की पत्रिका में चंद्रबल है, तो उसे शानदार कीर्ति प्राप्त होती है.
मंगल : मंगल ग्रह को ग्रहों का सेनापति कहा जाता है. इसलिए मंगल को लडाकू ग्रह भी कहते है. साथ ही इसे पराक्रम कारक ग्रह के रुप में भी जाना जाता है. ये सभी गुण मंगल प्रभावशाली होनेवाले लोगो में दिखाई देते है.
बुध : बुध ग्रह ग्रहों के मंत्रीमंडल का राजकुमार कहलाता है. क्यों की यह ग्रह सौर मंडल का सबसे छोटा ग्रह है. इस ग्रह को बुद्धि का कारक भी कहा जाता है. बुध मजबूत होनेवाले लोग प्रगत बुद्धिमत्ता के धनी होतें है.
बृहस्पति : बृहस्पति या गुरु ग्रह को ग्रहों के मंत्रीमंडल का प्रधानमंत्री माना जाता है. जिन से सलाह या मार्गदर्शन लेने के लिए हर कोई आता है. इस विशेषता के कारण बृहस्पति को ज्ञान का कारक भी कहा जाता है. गुरु बलशाली रहने वाले जातक बडे तत्त्वज्ञानी होतें है.
शुक्र : शुक्र को ग्रहों के मंत्रीमंडल का गुप्त मंत्री कहा जाता है. आधुनिक काल में जिसको हम सी बी आई कहते है, उसका स्वामित्व शुक्र के पास है. इस ग्रह को विषयसुख या भौतिक सुख का कारक ग्रह भी कहा जाता है. परिणाम स्वरुप शुक्र बलशाली रहने वाले जातक विलासी जीवन व्यतीत करता पसंद करतें हैं.
शनि : शनि ग्रह न्यायाधीश है. शनि की दृष्टि से कोई भी और कुछ भी बचता नहीं है. अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा को न्याय दिलाने का काम शनि महाराज करतें हैं. शनि ग्रह को परमार्थ कारक भी कहा जाता है.
राहु और केतु : राहु और केतु यह ग्रह सेवक के रुप में काम करतें हैं. राहु बिछडने का कारक और केतू षडयंत्र कारक के रुप में जाना जाता है.
हर्षल :हर्षल ग्रह को अकस्मात घटनेवाली घटनाओं का कारक ग्रह कहा जाता है. मनुष्य जीवन में अकस्मात जो भी घटना दुर्घटनाएँ होती है वह इस ग्रह के कारण ही होती है.
नेपच्यून : नेपच्यून ग्रह को अंतरात्मा की स्फूर्ति का कारक ग्रह कहा जाता है.
प्लूटो : प्लूटो को संशोधन का कारक ग्रह कहा जाता है.