कुंडली एवं मनुष्य शरीर के अंग
कुंडली एवं उससे जुडे मनुष्य शरीर के अंगों का हम परिचय करने वालें है. यानी कुंडली अपने शरीर के विभिन्न अंगो को भी दर्शाती है. साथ ही हम बारह राशियों का भी अध्ययन करेंगे.
कुंडली के अलग अलग स्थान मनुष्य शरीर के अंगो का बोध कराते है. मनुष्य जीवन ग्रहों की दिशा एवं दशा पर निर्भर करता है. ग्रह कुंडली में विभिन्न स्थानों को प्रभावित करतें हैं. परिणाम स्वरुप ग्रह उस स्थान का प्रतिनिधित्व करने वालें अंगो को भी प्रभावित करतें हैं. तो आइए अब कुंडली स्थानानुसार शरीर के अंगों के संदर्भ में जानते है.
प्रथम स्थान : कुंडली का पहला स्थान शरीर के शीर्ष भाग का प्रतिनिधित्व करता है.
अर्थात वह चेहरा, सिर, बाल दर्शाता है.
द्वितीय स्थान : कुंडली का द्वितीय स्थान गर्दन, मुँह, दाहिनी आँख को दर्शाता है.
तृतीय स्थान : कुंडली के तृतीय स्थान में कंधे, फेफडे और दाहिना कान शामिल होतें है.
चतुर्थ स्थान : कुंडली का चतुर्थ स्थान हृदय, छाती, कान का प्रतिनिधित्व करता है.
पंचम स्थान : कुंडली के पंचम स्थान में दाहिनी कोहनी, पेट, पीठ शामिल होतें है.
षष्टम स्थान : कुंडली का षष्टम स्थान कमर, पाचन अंगो एवं छोटी और बडी आत को दर्शाता है.
सप्तम स्थान : कुंडली का सप्तम स्थान निचला पेट एवं मूत्राशय को दर्शाता है.
अष्टम स्थान : कुंडली के अष्टम स्थान में गुप्तांग के भीतरी भाग का समावेश होता है.
नवम स्थान : कुंडली का नवम स्थान जांघों को दर्शाता है.
दशम स्थान : कुंडली का दशम स्थान घुटनों का प्रतिनिधित्व करता है.
एकादश स्थान : कुंडली का एकादश स्थान पेट और बाएं कान का प्रतिनिधित्व करता है.
द्वादश स्थान : कुंडली का द्वादश स्थान बाईं आँख और पैरों के तलवे का प्रतिनिधित्व करता है.
इस प्रकार हमारी कुंडली का प्रत्येक स्थान हमारे प्रत्येक अंग का प्रतिनिधित्व करता है. यदि हम कुंडली में ग्रहों की दिशा और स्थिति को समझते हुए इन स्थानों का अध्ययन करतें हैं, तो हम देख सकते है की उनका प्रभाव मानव जीवन के साथ साथ अंगो एवं शरीर पर भी हो रहा है. इसलिए इनका अध्ययन करना बहुत आवश्यक है.
अब हम राशि चक्र के संदर्भ में जानेंगे. एक कहावत है की मनुष्य अपने मूल स्वभाव के अनुसार जीवन जीता है. राशि चक्र के निर्माता एवं ज्योतिष तज्ञ श्री. शरद उपाध्येजी कहते है, “मनुष्य जाति पर नहीं बल्की राशि पर जाता है.’’ अपनी इस बात को प्रमाणित करने के लिए वे विभिन्न प्रमाण भी देते है. तो विषय है राशि एवं उसकी विशेषताएँ एवं राशि का मनुष्य जीवन से संबंध अब हमे देखना है. राशियों की उत्पत्ती एवं उनका संबंध आकाश के तारामंडल से है. जैसा की आप जानते है, चंद्रमा, सूर्य, पृथ्वी लगातार घूम रहे है. जैसे जैसे सूर्य भ्रमण करता है वह एक निश्चित अवधी के बाद एक तारामंडल से दूसरे तारामंडल में भ्रमण करता है. सूर्य की इस भ्रमण कक्षा या मार्ग को क्रांतिवृत्त कहा जाता है. ज्योतिष शास्त्र के रचनाकारों ने सूर्य के इस मार्ग का तीस डिग्री के बारह भागों में विभाजन कीया है. इनमें से प्रत्येक भाग में सवा दो नक्षत्र दिखाई देते है. इन सवा दो नक्षत्रों द्वारा गठित तारामंडल को एक राशि कहा जाता है. अपने अंतरिक्ष में ऐसे १२ नक्षत्र है. जिन्हें १२ राशियों के नाम से जाना जाता है.
भविष्य देखते हुए कुछ ज्योतिषी रवि को महत्व देकर रवि की राशि देखते है. कुछ लोग चंद्रमा को महत्व देकर चंद्र राशि देखते है. इसका मतलब है की राशि चक्र को दो तरीकों से देखा जा सकता है. रवि यानी सूर्य होता है. सूर्य की गति निश्चित है. उसकी दैनिक गति एक डिग्री या एक अंश इतनी है. अर्थात, रवि एक महीने में एक राशि और एक वर्ष में १२ राशियाँ पूरी करता है. अर्थात व्यक्ति का जन्म जिस महीने में होता है उस महीने में सूर्य जिस राशि में होता है वह उस व्यक्ति की राशि माना जाती है.
चंद्रमा के संधर्भ में राशि का मतलब है की व्यक्ति का जन्म जिस दिन हुआ है उस दिन चंद्रमा जिस राशि में होगा वह उस व्यक्ति की राशि मानी जाती है. चंद्रमा आमतौर पर सवा दो दिन एक राशि में होता है. अर्थात, वह २७ दिनों में बारह राशियों का भ्रमण पूरा करता है.
राशि यह विषय, ज्योतिष शास्त्र में उसका महत्व, मनुष्य जीवन में उसके महत्व को समझने के लिए हमें नक्षत्रों को भी समझना अत्यावश्यक है. सूर्य के भ्रमण की कक्षा मतलब क्रांतिवृत्त का १/२७ वे भाग को एक नक्षत्र कहते है. अपने आकाश मंडल में ऐसे कुल २७ नक्षत्र है. अर्थात एक राशि में कुल सवा दो नक्षत्र होतें है. अपने ज्योतिष शास्त्र में उनका भी अधिक सुक्ष्मता से अध्ययन, संशोधन कीया गया है. हर एक नक्षत्र १३ अंश एवं २० कला से बना होता है. उसमें कुल ४ चरण होतें है. एक नक्षत्र कई तारों से बना होता है. इन नक्षत्रों का भी ज्योतिष शास्त्र में बडा ही महत्वपूर्ण स्थान है. क्यों कि राशिचक्र सहित ज्योतिष शास्त्र का पूरा अध्ययन इन नक्षत्रों पर ही आधारित है. राशि क्रमानुसार कुछ इस प्रकार है.
मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन
हम केवल निसर्ग कुंडली जैसे सभी राशियों का अध्ययन कर रहे हैं. कुल मिलाकर हमें आकाश में राशियों की स्थिति नहीं दीखती. इस वजह से राशियों को काल्पनिक भी माना जाता है. कींतु हम उनके महत्व से बच नहीं सकते.