“कुंडली पहचान”
ज्योती का अर्थ है प्रकाश. मनुष्य के जीवन को प्रकाशमान करनेवाला शास्त्र ऐसी ज्योतिष शास्त्र की सरल एवं सीधी परिभाषा की जा सकती है. ज्योतिष शास्त्र के मार्गदर्शन से मनुष्य कामयाबियों को छू सकता है. ज्योतिषी होने के नाते कई लोग जब भविष्य को जानने हेतु मेरे पास आतें हैंतो वे अपने साथ कई गलत धारणाएं भी लेकर आते है. उन्हें लगता है की मै उनका भाग्य बदल सकती हूँ. अंतर्निहित तथ्य यह है की ज्योतिषी भाग्य को बदल नहीं सकता. ज्योतिषी सिर्फ आपके भाग्य में क्या लिखा है? इसकी जानकारी देता है. अगर अच्छी चीजें हैं, तो उससे और कैसे लाभान्वित हो सकते है और अगर बुरी चीजें हैं, तो उस समस्या की गंभीरता को कैसे कम कर सकते है. इस संदर्भ में मार्गदर्शन करने काम ज्योतिषी करतें हैं. भाग्य में जो लिखा है उसे कोई भी टाल नहीं सकता. इस विषय में अधिक जागरुकता लाना बहुत ही आवश्यक है.
ज्योतिष शास्त्र के दृष्टिकोन से अध्ययन करके, हमें पहले यह समझना चाहिए की यह शास्त्र हमारे फायदे के लिए बनाया गया है. अपने पूर्वजों ने मानव कल्याण हेतु कड़ी मेहनत से उसे विकसित कीया है. गर्व की बात यह है की इस विज्ञान का अध्ययन आज पूरे विश्वभर में कीया जा रहा है. कुंडली का क्या मतलब है? इसे कैसे बनाया जाता है? आइए इसे पहले समझें.
व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में जो ग्रहों की स्थिति होती है, उस स्थिति के अनुसार कुंडली बनायी जाती है. संपूर्ण ज्योतिष शास्त्र जिस पर आधारित है उस कुंडली में १२ घर होतें है. उन्हे १२ भाव भी कहा जाता है. ये भाव मनुष्य जीवन के विभिन्न स्थानों को दर्शाने का काम करतें हैं. इन १२ स्थानों में ग्रह लगातार भ्रमण करते रहते हैं. जिसके संदर्भ में हम आगे जाननेवाले ही है. चलिए अब इन १२ स्थानों के संदर्भ में जानते है.
०१) प्रथम स्थान का अर्थ है तनु स्थान या स्वयं का स्थान.
०२) द्वितीय स्थान धन को दर्शाता है. व्यक्ति के जीवन में अर्थ की प्राप्ति कैसी होगी? यह दिखाने का कार्य द्वितीय स्थान करता है.
०३) तृतीय स्थान पराक्रम का स्थान है. इसलिए, इस स्थान पर ग्रहो द्वारा की जानेवाली गतिविधियों के अनुसार व्यक्ती का पराक्रम या कर्तृत्व होता है.
०४) चतुर्थ स्थान को सुख स्थान कहा जाता है. इस स्थान पर ग्रहों की अनुकूलता व्यक्ति के जीवन में खुशी का माहौल बनाती है.
०५) पंचम स्थान विद्या एवं संतती का स्थान है. यह व्यक्ति की शिक्षा, उसकी वित्तिय स्थिति एवं संतानों की स्थिति को दर्शाता है.
०६) षष्ठम स्थान शत्रु का स्थान होता है. यह स्थान पर ग्रहों का बलाबल व्यक्ती के जीवन में आनेवाले शत्रु एवं समस्याओं को दर्शाने का काम करता है.
०७) सप्तम स्थान पति या पत्नी का स्थान है. आपके जीवन का साथी कैसा होगा? यह दर्शाने का काम यह स्थान करता है.
०८) अष्टम स्थान वह दिखाता है जो अटल है फिर भी जिसके संदर्भ में हर कोई चिंतित होता है, यह स्थान मृत्यु को दर्शाता है.
०९) नवम स्थान को भाग्य का स्थान कहा जाता है. साथ ही विदेश यात्रा की संभावना दर्शाता है. आपका भाग्य कैसा होगा? या आपको विदेश जाने का मौका मिलेगा या नहीं? यह दर्शाने का काम नवम स्थान करता है.
१०) दशम स्थान मनुष्य के कर्म को दर्शाता है. इस स्थान के ग्रहों का अपने कर्म पर परिणाम होता है.
११) एकादश स्थान को लाभ स्थान कहा जाता है.
१२) द्वादश स्थान को व्यय स्थान कहा जाता है.
कुंडली में स्थित जिन १२ स्थानों के संदर्भ में हमने जाना वह स्वय के संदर्भ में है. यही १२ स्थान अपने रिश्तेदारों के संदर्भ में भी दर्शाते हैं. आइये अब इसके संदर्भ में भी समझ लेते है.
०१) प्रथम स्थान अपने स्वयं का स्थान होता है.
०२) द्वितीय स्थान पारिवारिक स्थान है. परिवार में व्यक्ति से संबंधित घटनाएँ इस स्थान के अनुसार होती है. इसलिए द्वितीय स्थान का अपना ही विशेष महत्व है.
०३) तृतीय स्थान भाईबहनों का स्थान होता है.
०४) चतुर्थ स्थान को माता का स्थान कहा जाता है.
०५) पंचम स्थान संतती एवं पहली संतान को दर्शाता है.
०६) षष्ठम स्थान मामा, मौसी या माता के रिश्तेदारों का स्थान है.
०७) सप्तम स्थान से वैवाहिक साथी का बोध होता है.
०८) अष्टम स्थान व्यक्ति के ससुराल का स्थान है.
०९) नवम स्थान तीसरी संतान को दर्शाता है.
१०) दशम स्थान पिता एवं सासु माँ का स्थान है.
११) एकादश स्थान पहली पुत्र वधु या पहले जमाई राजा स्थान है.
१२) द्वादश स्थान काका और बुआ से संबंधित होता है.
हमने देखा की, जन्म कुंडली के १२ स्थानों से अपने व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन को कैसे दिखाया जाता है. इससे आपके यह भी ध्यान में आया होगा की इन १२ स्थानों ने व्यक्ति के पूरे जीवन पर अपना प्रभाव डाला है. जन्म कुंडली में इसके अलावा दूसरी कोई बात नहीं होती है. इसलिए ज्योतिष शास्त्र में कुंडली और उसके १२ स्थान इनका बडा ही महत्व है.