रवि के अनुसार जन्म
समय कैसे पहचानें?
रवि के अनुसार जन्म समय पहचाना जाता है. वह कैसे? इस विषय का हम अध्ययन करने वालें है. कुंडली में जन्म समय का बडा ही महत्व होता है. जन्म का समय एवं स्थान के बिना कुंडली बनाना असंभव होता है. विशेष रुप से जन्म समय का तो बडा ही महत्व है. क्यों की जन्म समय के अनुसार ही रवि (सूर्य) एवं चंद्र कौन से स्थान में है? इसकी जानकारी हमे मिलती है और इसी से कुंडली बनाई जाती है. साथ ही, कुंडली के इस स्थान से ही यह बताना संभव है की जन्म का समय सही है या नही? सब से पहले हम सूर्य समय के अनुरुप कौन से स्थान में होता है? यह समझ लेते है.
- जन्म यदि सुबह ६ से ८ बजे तक होता है, तो जन्म लेने वाले व्यक्ति की कुंडली में सूर्य पहले स्थान पर विराजित होता है.
- जन्म यदि सुबह ८ से १० बजे तक होता है, तो जन्म लेने वाले व्यक्ति की कुंडली में सूर्य १२ वें स्थान पर विराजित होता है.
- जन्म यदि सुबह १० से दोपहर १२ बजे तक होता है, तो सूर्य जातक की कुंडली में ११ वें स्थान पर विराजित रहता है.
- जन्म यदि दोपहर १२ से २ बजे तक होता है, तो सूर्य जातक की कुंडली में १० वें स्थान पर विराजित रहता है.
- जन्म यदि दोपहर २ से शाम ४ बजे तक होता है, तो सूर्य जातक की कुंडली में ९ वें स्थान पर विराजित होता है.
- जन्म यदि शाम ४ से ६ बजे तक होता है, तो सूर्य जातक की कुंडली में ८ वें स्थान पर विराजित होता है.
- जन्म यदि शाम ६ से रात ८ बजे तक होता है, तो सूर्य जातक की कुंडली में ७ वें स्थान पर विराजित होता है.
- जन्म यदि रात ८ से १० बजे तक होता है, तो सूर्य जातक की कुंडली में ६ वें स्थान पर स्थित रहता है.
- जन्म यदि रात १० से १२ बजे तक होता है, तो सूर्य जातक की कुंडली में ५ वें स्थान पर स्थित रहता है.
- जन्म यदि रात १२ से सुबह २ बजे तक होता है, तो जन्म लेने वाले व्यक्ति की कुंडली में सूर्य ४ वें स्थान पर विराजित रहता है.
- जन्म यदि सुबह २ से ४ बजे तक होता है, तो जन्म लेने वाले व्यक्ति की कुंडली में सूर्य ३ रे स्थान पर विराजित रहता है.
- जन्म यदि सुबह ४ से ६ बजे तक होता है, तो जन्म लेने वाले व्यक्ति की कुंडली में सूर्य २ रे स्थान पर विराजित रहता है.
समय के अनुसार यह स्थान याद रखना ज्योतिष शास्त्र के अभ्यास के लिए बहुत आवश्यक है. क्यों कि कुंडली बनाते समय यह जरुरी होता है. इन सभी स्थानों को ध्यान में रखते हुए, जन्म का समय सही है या नहीं? यह हम देख सकते है. लेकीन सुर्योदय के समयानुसार इसमें थोडी भिन्नता आ सकती है. कोई स्थान आगे या पीछे भी हो सकता हैे.
अब हम कुंडली के विभिन्न स्थानों के संदर्भ में जानने वाले है.
- १-४-७-१० इन स्थानों केंद्र स्थान कहा जाता है, जो की शुभ होतेंं है.
- ५ एवं ९ वें स्थान को त्रिकोण स्थान कहा जाता है, जो की शुभ होतेंं है.
- ३,६,११ इन स्थानों को नाशक स्थान कहा जाता है, जो की अशुभ होतेंं है.
- २ एवं ७ वे स्थान को मारक स्थान कहा जाता है, जो की अशुभ होतेंं है.
- ६,८,१२ इन स्थानों को त्रिक स्थान कहा जाता है, जो की अशुभ होतेंं है.
दूसरा और सातवां स्थान वह स्थान होता है जो परिवार एवं धन का प्रतिनिधित्व करतें हैं. इतिहास साक्षी है की, बहुत से युद्ध मुख्य रुप से पैसे एवं जमीन जायदाद के लिए लड़े गये है. इसलिए इन दो स्थानों को मारक स्थान कहा जाता है. कुंडली के तीसरे एवं ११ वें स्थान को अशुभ स्थान माना जाता है. ११ वा स्थान छठे स्थान का छठा स्थान होता है. यानी यह स्थान शत्रु का शत्रु स्थान होता है. साथ ही छठे स्थान से बीमारी का भी बोध होता है. इसलिए उसे अशुभ माना जाता है.
तिसरा स्थान अष्टम स्थान का अष्टम कहलाता है. इसलिए वह अशुभ माना जाता है.
इन स्थानों के साथ कुंडली में चंद्रबल भी महत्वपूर्ण होता है. शुक्ल प्रतिपदा से लेकर शुक्ल दशमी तक मध्यम चंद्रबल होता है. शुक्ल दशमी से कृष्ण पंचमी तक चंद्रमा बलवान होता है. साथ ही कृष्ण पंचमी से अमावस्या तक चंद्रमा बल हीन होता है.