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एस्ट्रो गुरुमाँ डॉ ज्योति जोशी

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ग्रह और उनकी विशेषताएँ

ग्रह और उनकी विशेषताएँ 

 

पिछले भाग में हमने ग्रहों की पहचान की. साथ ही वे मनुष्य जीवन को कैसे प्रभावित करतें हैं इसका भी अध्ययन कीया. अब हम ग्रहों के संदर्भ मेंअधिक जानेंगे. प्रमुख ग्रहों के अनेक प्रकार होतें है. इस भाग में हम उनका अध्ययन करेंगे.

जैसे सिक्के के दो पहलू होतें है, वैसे ही हर चीज के भी दो पहलू होतें है. हर चीज से दो तर्क निकलते है. यह समीकरण मनुष्य जीवन पर भी लागू होता है. कोई भी आदमी कभी भी पूरी तरह से बुरा या पूर्ण रुप से अच्छा नहीं हो सकता. प्रसंगानुरुप, स्थिति, समय के आधार पर मानव स्वभाव की विभिन्न विशेषताएँ सामने आती है. हालांकि यह सब सच होतें हुए भी मनुष्य का एक मूल स्वभाव कायम रहता है. जो आमतौर पर नहीं बदलता है. यह सब ग्रहों के बारें में भी होता है. वास्तव में यह पहले ग्रहों में ही मौजूद होता है, यही कारण है की उसका प्रभाव मनुष्य जीवन पर होता है.

कीसी सयम पर कोई मनुष्य विक्षिप्त की तरह व्यवहार कर जाता है. जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता की वह इस तरह का व्यवहार कर सकता है. अनजाने में उसके द्वारा ऐसा व्यवहार होता है. जो ग्रहों के प्रभाव के कारण होता. ऐसे प्रभावशाली ग्रहों के स्वभावानुसार, कार्य के अनुसार अलग अलग प्रकार कीए गए है.

रवि, मंगल, बृहस्पति और चंद्रमा को मित्र ग्रह कहा जाता है. साथ ही बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु, हर्षल, नेपच्यून, प्लुटो इन सभी ग्रहों की आपस में मित्रता है.

ग्रहों के पुरुष ग्रह, स्त्री ग्रह एवं नपुसंक ग्रह ऐसे भी प्रकार होतें है.

इसके अलावा ग्राहों के शुभ ग्रह और अशुभ ग्रह प्रकार भी होतें है.

पुरुष ग्रह : रवि, मंगल, बृहस्पति, राहु, केतु, हर्षल
स्त्री ग्रह : चंद्रमा, शुक्र, नेपच्यून
नपुंसक ग्रह : बुध, शनि, प्लूटो

 

ग्रहों के यह प्रकार बहुत  ही महत्त्वपूर्ण है. इसलिए आपको उनका बड़ी लगन से अध्ययन करना चाहिए. तभी आगे हम जो भी सिखेंगे उसका लाभ मिल सकता है. केवल शुभ और अशुभ ही ग्रहों के गुणधर्म नहीं होतें है बल्की इन गुणधर्मों के आधार पर ही उन्हे अलग  अलग तरह से वर्गीकृत भी कीया जाता है.

प्राकृतिक शुभ ग्रह बृहस्पति, शुक्र, बुध, चंद्रमा
प्राकृतिक अशुभ ग्रह रवि, मंगल, शनि, राहु, केतु, हर्षल, नेपच्यून और प्लूटो

 

जब बुध शुभ ग्रहों के साथ होता है, तो वह शुभ फल देता है और अशुभ ग्रहों के साथ वह अशुभ फल देता है. संक्षेप में बुध में पानी के समान गुण है. जैसे पानी को जिसमें मिलाया जाता है, वह वैसा ही बन जाता है, उसी तरह बुध का कीसी अन्य ग्रह के साथ गठबंधन है तो वह उसी की तरह प्रभाव देता है. अब तक हमने ग्रहों के विभिन्न प्रकारों का अध्ययन कीया है. अब हम ग्रहों और कुंडली पर उनके प्रभावों का अध्ययन करतें हैं. कुंडली के कुछ स्थानों पर ग्रह अधिक मजबूत होकर जातक के जीवन को प्रभावित करतें हैं.

बुध और गुरु यह दो ग्रह कुंडली के प्रथम स्थान में अधिक शक्तिशाली होतें है.

शुक्र और चंद्रमा यह ग्रह कुंडली के चतुर्थ स्थान में बलशाली होतें है.

कुंडली के सप्तम स्थान में शनि महाराज बलशाली होतें है.

रवि और मंगल यह ग्रह कुंडली के दशम स्थान में बलशाली होतें है.

ग्रह बलशाली होने का मतलब उनका प्रभाव बढना होता है. प्रभाव बढते ही उनके मूल स्वभाव के अनुसार अच्छे या बुरे परिणाम मनुष्य के जीवन पर पडते है. पंचांग के अनुसार भी ग्रह मजबूत होकर अपना प्रभाव डालते है. जैसे शुक्ल पक्ष में शुभ ग्रह प्रबल होतें है. साथ ही कृष्ण पक्ष में अशुभ ग्रह प्रबल होतें है. इसके अलावा, ग्रहों की दिशाएँ भी तय होती है. जिस ग्रह की जो दिशा होती है उस दिशा के तरफ उस ग्रह का सबसे ज्यादा प्रभाव दिखाई देता है. अब हम इस विषय के संदर्भ में जानने वाले हैं.

 

जब हम कीसी कार्य को पूरा करने के मनोरथ से कीसी ज्योतिषी के पास मार्गदर्शन हेतु जाते है, तो हमे अक्सर उनसे एक दिशा बताई जाती है. यदि आप इस दिशा में प्रयास करतें हैं, तो आप निश्चित रुप से सफल होंगे, ऐसा हमे बताया जाता है. कोई चीज कौनसी दिशा में चाहिए? इस बात पर वास्तुशास्त्र में भी जोर दिया जाता है. व्यवसाय के मामले में व्यावसायिक का मुँह इसी दिशा में होना चाहिए या विद्यार्थी इस दिशा को मुँह करके बैठे तो अध्ययन में प्रगती होती है, ऐसा कहा जाता है. क्यों की प्रत्येक ग्रह की स्वयं की एक दिशा होती है. अब हम इन दिशाओं का अध्ययन करेंगे.

उत्तर एवं ईशान्य दिशा की ओर गुरुबल रहता है.

पूर्व की ओर रविबल ज्यादा होता है.

पश्चिम दिशा में शनिबल मजबूत होता है.

दक्षिण दिशा में मंगल बलवान होता है.

बुध वायव्य दिशा में बलवान होता है.

चंद्रमा नैऋत्य दिशा में बलवान होता है.

शुक्र आग्नेय दिशा में बलवान होता है.

राहु और केतु ग्रह आग्नेय दिशा में बलवान होतें है.

इसके अलावा कुंडली के केंद्र और त्रिकोण स्थान में ग्रह मजबूत होतें है. जिनके प्रभाव के कारण जातक को जिंदगी भर दुष्परिणाम भुगतने पडते है. प्रथम स्थान की तुलना में चतुर्थ स्थान पर, चतुर्थ की तुलना में सप्तम स्थान पर, सप्तम की तुलना में दशम स्थान पर इस तरह ग्रह बलवान, मजबूत होतें जाते है. साथ ही ग्रह न केवल मजबूत होतें है बल्की कमजोर भी होतें है. यानी उनका प्रभाव कम हो जाता है. प्रत्येक ग्रह अपनी ही राशि से सातवी राशि में कमजोर होता है. इसलिए उस स्थान पर वह अशुभ परिणाम देते है. इसके संदर्भ में विस्तार से जानने के लिए आपको प्रत्येक ग्रह की स्वराशि को जानना आवश्यक है.

रवि ग्रह की स्वराशि सिंह है और वह कुंभ राशि में निर्बल होता है.

चंद्रमा की स्वराशि कर्क है और वह मकर राशि में निर्बल होता है.

बुध ग्रह की स्वराशि मिथुन है और वह धनु एवं मीन राशि में निर्बल होता है.

मंगल ग्रह की स्वराशि मेष एवं वृश्चिक है और वह तुला एवं वृषभ इन दो राशियों में निर्बल होता है.

गुरु ग्रह की स्वराशि धनु एवं मीन है और वह मिथुन एवं कन्या इन दो राशियों में निर्बल होता है.

शुक्र ग्रह की स्वराशि वृषभ एवं तुला है और वह वृश्चिक एवं मेष इन दो राशियों में निर्बल होता है.

शनि ग्रह की स्वराशि मकर एवं कुंभ है और वह कर्क एवं सिंह इन दो राशियों में निर्बल होता है.

यह ग्रह कीन राशियों में बलवान और निर्बल होतें है इसके संदर्भ में था. अब हम कुंडली के विभिन्न स्थानों पर ग्रहों की दृष्टि के विषय में जानने वाले हैं. सभी ग्रह स्वस्थान से सातवें स्थान पर पूर्ण दृष्टि से देखते है. उसमें गुरु बृहस्पति ५, ७, ९ वें स्थान पर पूर्ण दृष्टि से देखते है. मंगल ग्रह ४, ७, ८ वें स्थान पर पूर्ण दृष्टि सें देखता है. शनि ग्रह ३, ७, १० वें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते है. राहु और केतु दोनों ही ५, ७, ९ वें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते है. शुभ ग्रह का फल शुभ और पाप ग्रह का फल अशुभ होता है. इसके अलावा, प्रत्येक ग्रह की राशि भ्रमण की एक निश्चित अवधी होती है. अब हम उसके संदर्भ में जानेंगे.

ग्रहों का राजा रवि लगभग एक महीने के लिए एक राशि में रहता है.

चंद्रमा लगभग सव्वा दो दिन तक एक राशि में रहता है.

मंगल ग्रह लगभग डेढ महीने के लिए एक राशि में रहता है.

बुध ग्रह लगभग एक महीने के तक एक राशि में रहता है.

बृहस्पति लगभग १३ महिनों तक एक राशि में रहते है.

शुक्र ग्रह लगभग एक महीने तक एक राशि में रहता है.

राहु और केतु दोनों ही एक राशि में लगभग डेढ साल तक रहते है.

शनि महाराज एक राशि में लगभग ढाई साल तक रहते है.

हर्षल यह ग्रह लगभग ७ साल तक एक राशि में रहता है.

नेपच्यून यह ग्रह लगभग १४ सालों तक एक राशि में रहता है.

प्लुटों यह ग्रह लगभग २१ सालों तर एक राशि में रहता है.

 

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